रविवार, 21 जून 2009

पित्रदेव प्रणाम

आज फादर्स डे है । जिन पिता की गोद में हम खेले , पढ़े , बड़े हुए , जाने अनजाने जिनके संस्कार , सिद्दांत और स्वभाव हम में आत्म सात हो गए और जिनकी बदौलत हम आज यहाँ है जहाँ हमें होना चाहिए । जो एक विशाल बट वृक्ष की तरह अपनी छाव में हमें रखे हुए हैं , उनके ऋण से हम कभी भी उरिण हो ही नही पाएंगे । उनका ऋण चुकाने का सच्चा तरीका तो यह है की हम अपने बच्चों को भी वैसे ही संकार और शिक्षाएं दे जैसी हमें दी गई है ।

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