एक छोटे शहर से धीरे धीरे एक महानगर का रूप लेता छोटा शहर देखने का अनुभव शायद ही किसी को हुआ हो।
जैसे किसी ने शांत झील में एक पत्थर उछालदिया हो । और सोया पड़ा जल अकस्मात ही उथल पुथल हो गया हो । दुसरे शहरो से ढेर सारे लोग पानी के रेलों की तरह चले आ रहे हैं रोजगार की तलाश में । इन बाहरी लोगों के साथ इनकी अच्छा इयाँ और बुराइयाँ दोनों ही आ रही हैं। व्यक्ति की पहचान मुश्किल है । किस पर विश्वास किया जाई और किस पर नहीं । चारोंओर शौर ही शौर है । आपा धापी मची है । यह लगने लगा है
की इससे to अच्छा मेरा शहर pahale था ।
बुधवार, 24 दिसंबर 2008
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